सीएम पुष्कर सिंह धामी ने की पर्वतीय राज्यों के लिए पृथक विमानन नीति की मांग।

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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शुक्रवार को देहरादून स्थित होटल में आयोजित नागर विमानन सम्मेलन-2025 में प्रतिभाग किया। इस अवसर पर केंद्रीय नागर विमानन मंत्री किंजरापु राममोहन नायडू और उत्तर भारत के नागर विमानन मंत्रियों एवं केंद्रीय नागर विमानन मंत्री किंजरापु राममोहन नायडू का स्वागत किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह सम्मेलन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश के नागर विमानन क्षेत्र में आई ऐतिहासिक प्रगति का प्रमाण है।

उन्होंने कहा कि उड़ान योजना के माध्यम से छोटे शहरों और दुर्गम क्षेत्रों को हवाई संपर्क से जोड़कर न केवल आम नागरिकों के लिए हवाई यात्रा सुलभ हुई है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिली है। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड में वर्तमान में 18 हेलीपोर्ट्स का विकास किया जा रहा है, जिनमें से 12 पर सेवाएं प्रारंभ हो चुकी हैं। उन्होंने कहा कि हेली सेवाएं उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्यों में केवल परिवहन का साधन नहीं, बल्कि जीवन रेखा बन चुकी हैं। चाहे आपदा प्रबंधन हो, स्वास्थ्य सेवाएँ हों या तीर्थयात्रा, हेलीकॉप्टर सेवाओं ने इन क्षेत्रों में अभूतपूर्व सुविधा प्रदान की है।

मुख्यमंत्री धामी ने केन्दीय नागर विमानन मंत्रालय से पर्वतीय राज्यों के लिए एक पृथक “पर्वतीय विमानन नीति” बनाने का आग्रह किया, जिसमें विशेष वित्तीय सहायता, संचालन हेतु सब्सिडी, पर्वतीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त । एटीसी नेटवर्क, सटीक मौसम पूर्वानुमान, स्लॉटिंग और आपदा-पूर्व तैयारी जैसे प्रावधान शामिल हों। मुख्यमंत्री ने सभी ऑपरेटरों से भी पर्वतीय उड़ानों के लिए विशेष पायलट प्रशिक्षण, सुरक्षा मानकों का कठोर पालन और यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का भी अनुरोध किया।

केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री किंजरापु राममोहन नायडू की उपस्थिति में शुक्रवार को देहरादून, मसूरी रोड स्थित निजी होटल में मिनिस्टर कॉन्फ्रेंस ऑन सिविल एविएशन (नॉर्दर्न रीजन) के अंतर्गत नागरिक उड्डयन में क्षेत्र में राज्यों के लिए अवसर विषय पर सत्र आयोजित किया गया। इस दौरान विभिन्न विशेषज्ञों ने नागरिक उड्डयन से संबंधित संभावना के संबंध में प्रस्तुतिकरण दिया।

संयुक्त सचिव केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय असांगबा चुबा ने उड़ान योजना (UDAN) के बारे में बताते हुए कहा कि इस योजना के तहत विभिन्न राज्यों के साथ हवाई कनेक्टिविटी को मजबूत किया जा रहा है। साथ ही नए मार्गों में हवाई संचालन के लिए नई संभावनाओं पर भी कार्य हो रहा है। उन्होंने बताया देश में अब तक उड़ान योजना के तहत 625 आरसीएस रूट कनेक्ट किए जा चुके हैं। इस योजना का लाभ अब तक 1.53 करोड़ से अधिक यात्री ले चुके हैं। उन्होंने कहा अगले 10 साल में 4 करोड़ यात्रियों को हवाई सेवा का लाभ देने के लिए मॉडिफाइड उड़ान स्कीम शुरू की जाएगी। इस स्कीम के जरिए 120 गंतव्यों को आपस में जोड़ा जाएगा।

केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय के संयुक्त सचिव मधु सूदन शंकर ने बताया कि हवाई कनेक्टिविटी के संचालन के लिए हमारे पास आवश्यकता अनुसार मानव संसाधन भी होने चाहिए। पायलट, तकनीशियन, ग्राउंड स्टाफ से लेकर एयर ट्रैफिक कंट्रोल तक हर स्तर पर मानव संसाधन की आवश्यकता होती है। इसके लिए राज्यों में प्रशिक्षण संस्थान भी होने चाहिए। उन्होंने बताया भारत 2030 तक दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा विमानन बाजार बनेगा (IATA के अनुसार)। देश में मौजूदा हवाई अड्डों की संख्या 162 से बढ़कर 2047 तक 350-400 तक पहुंचने की संभावना है। उन्होंने बताया एयरबस के अनुसार, भारत को वर्ष 2040 तक विमानन रखरखाव के लिए करीब 45,000 टेक्नीशियन की आवश्यकता होगी। इसके लिए राज्यों को अपने यहां प्रशिक्षण संस्थान खोलने होंगे।

ड्रोन फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष स्मित शाह ने बताया कि ड्रोन के लिए स्पेशल लॉन्चपैड बनाने की दिशा में राज्यों को आगे आना चाहिए। साथ ही अपने अपने राज्यों में ड्रोन नीति को बढ़ावा और ड्रोन स्टार्टअप्स को बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने बताया अब तक देश में 33,000 से अधिक ड्रोन पंजीकृत किए जा चुके हैं। 24,000 से अधिक ड्रोन पायलटों को प्रमाणित किया जा चुका है। साथ ही 120 ड्रोन मॉडल टाइप सर्टिफिकेशन प्रदान किए गए हैं। देशभर में 178 ड्रोन प्रशिक्षण स्कूलों को स्वीकृति प्रदान की गई है।

नागरिक उड्डयन मंत्रालय ( हेलिकॉप्टर इमरजेंसी मेडिकल सर्विस HEMS) के निदेशक शंखेश मेहता ने बताया कि मेडिकल हेली सेवा को बढ़ावा देने के लिए प्रोजेक्ट संजीवनी शुरू की गई है। यह पहल नागरिक उड्डयन मंत्रालय, एम्स ऋषिकेश और उत्तराखंड राज्य सरकार के सहयोग से शुरू की गई है। इस परियोजना का उद्देश्य दुर्गम क्षेत्रों में चिकित्सा सेवाएं पहुंचाना है। उन्होंने बताया अब तक 65 से अधिक सफल राहत एवं बचाव अभियान पूरे किए चुके हैं। उन्होंने अन्य राज्यों से भी इस क्षेत्र में आगे आने का आग्रह किया।

कार्यकारी निदेशक एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया सुजॉय दे ने हवाई अड्डों के विकास मॉडल पर की जानकारी देते हुए कहा कि किसी भी नए एयरपोर्ट के निर्माण में कई तकनीकी और पर्यावरणीय मानकों को प्राथमिकता दी जाती है। उन्होंने बताया कि विंड ओरियंटेशन (हवा की दिशा), सराउंडिंग टोपोग्राफी (आसपास का भौगोलिक परिदृश्य), फ्री एयर स्पेस, एनवायरनमेंट एसेसमेंट (पर्यावरणीय आंकलन) जैसे विभिन्न मानकों को ध्यान में रखकर ही एयरपोर्ट का विकास किया जाता है।