विश्व पर्यावरण दिवस – पृथ्वी से जीवन को विलुप्त होने से रोकने के लिए मिलकर पर्यावरण का संरक्षण करना है जरूरी।

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1800 शताब्दी में प्रारंभ हुई औद्योगिक क्रांति का जब पर्यावरण पर दुष्प्रभाव और पृथ्वी का जीवन आधार प्रणालियों का ह्रास होना नजर आने लगा तो विश्वभर के कुछ चिंतित वैज्ञानिकों के अनुरोध पर UNO द्वारा 05 से 16 जून 1972 को स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में मानव पर्यावरण (Human Environment) विषय पर एक विश्व स्तरीय कॉन्फेन्स का आयोजन किया गया था।

पर्यावरण पर पहली बार आयोजित इस कॉन्फ्रेंस का मुख्य उद्देश्य मानवीय गतिविधियों के कारण पर्यावरण के हो रहा ह्रास को सीमित करने के उपायों पर विचार करना था। स्टॉकहोम कॉफेन्स के नाम से प्रख्यात इस कॉन्फ्रेन्स में यह एकमत बना कि जनसमान्य की सकीय भागीदारी के बिना पर्यावरण संरक्षण संभव नहीं है। जनसामान्य में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के उद्देश्य से हर वर्ष 05 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाये जाने का संकल्प किया गया।

साल 1972 से लगातार प्रतिवर्ष विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है और इस प्रकार इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस मनाए जाने की स्वर्णिम जयंती वर्ष है। विश्व पर्यावरण दिवस मनाए जाने का मुख्य उद्देश्य जनसामान्य में पर्यावरण संरक्षण के संबंध में जागरूकता उत्पन्न कर पर्यावरण संरक्षण में उनकी रूची और सकीय भागीदारी प्रोत्साहित करना है। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर विश्व भर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं और हर वर्ष UNEP द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस के लिए एक थीम निर्धारित की जाती है, जिसको मुख्य बिन्दु मानते हुए विश्व पर्यावरण दिवस के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।

विश्व पर्यावरण दिवस 2022 की थीम ‘केवल एक पृथ्वी’ (Only One Earth) है। इस थीम के पीछे एक बहुत बड़ा संदेश छुपा हुआ है। यह तीन शब्दों की थीम हमे यह सोचने के लिए बाध्य करती है कि पूरे ब्रहमाण्ड में केवल पृथ्वी ऐसा गृह है जिसमें जीवन विद्यमान है। यदि किसी कारणवश पृथ्वी से जीवन की समाप्ती हो जाये तो पूरे ब्रहमाण्ड में से जीवन समाप्त हो जायेगा। आज की पीढ़ी के लिए यह एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है कि पृथ्वी से जीवन को विलुप्त होने न दिया जाये और इसका एक ही उपाय है।

कि हम सब मिलकर पर्यावरण का संरक्षण करें ताकि पृथ्वी का जीवन बनाये रखने की क्षमता स्वस्थ्य बनी रहे। घने वनो से अच्छादित उत्तराखण्ड राज्य, जो कि उत्तरी भारत के कई छोटी-बड़ी नदियों का उद्गम स्थल है, उत्तरी भारत के पर्यावरण को संतुलित बनाये रखने में बड़ी भूमिका निभाता है। ऐसी स्थिति में राज्य के समस्त रेखीय विभागों और विशेषकर वन विभाग का विशेष उत्तरदायित्व होता है। इसी सोच के मद्देनजर आज की यह कार्यशाला आयोजित की गयी है।

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