भाजपा ने विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर प्रदेश में पांच साल बाद होने वाले सत्ता परिवर्तन के मिथक को तोड़ दिया है। जबकि मुख्यमंत्री पुष्कर धामी अपनी सीट बचाने में सफल नहीं रहे। ऐसे में सीएम के चुनाव हारने का मिथक कायम रहा। लेकिन धामी के हारने से मुख्यमंत्री पद को लेकर भाजपा को फिर से कसरत करनी पड़ रही है।
प्रदेश की सियासत में परम्परागत कुमाऊं व गढ़वाल और ब्राह्मण व राजपूत का बैलेंस भी काफी अहम है। ऐसे में पार्टी सीएम बदलेगी या प्रदेश अध्यक्ष इसे लेकर तमाम प्रकार के कयास लगाए जाने शुरू हो गए हैं। उत्तराखंड की राजनीति में 2007 के बाद पार्टियां कुमाऊं व गढ़वाल और ब्राह्मण व राजपूत का बैलेंस बनाते हुए ही सियासत करती आई हैं।
सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने ही इसे बनाए रखा है। मुख्यमंत्री कुमाऊं से होने पर पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष गढ़वाल होता है। इसी तरह गढ़वाल से मुख्यमंत्री होने पर पार्टियां कुमाऊं से प्रदेश अध्यक्ष बनाती हैं। अब तक भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री पुष्कर धामी कुमाऊं और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक गढ़वाल मंडल से हैं। यही समीकरण बना रहता है तो फिरसे सीएम की कुर्सी कुमाऊं के नेता को मिल सकती है। यदि सीएम गढ़वाल से बनाया जाता है तो पार्टी संगठन में भी बदलाव होना तय बताया जा रहा है।
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