उत्तराखंड में अब सीमांत पर्यटन की दिशा में भी कदम बढ़ाए जा रहे हैं। इसके माध्यम से पिथौरागढ़ स्थित छोटा कैलास, चमोली स्थित टिम्मरसैंण महादेव, गर्तांगली, नेलांग घाटी जैसे सीमांत क्षेत्रों के पर्यटन व तीर्थाटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल पर्यटन मानचित्र पर नजर आएंगे। हालांकि, केंद्र सरकार की बार्डर टूरिज्म योजना के माध्यम से यह संभव हो सकता है। केंद्र ने उत्तराखंड समेत सभी राज्यों को सीमांत जिलों के पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थलों के संबंध में प्रस्ताव भेजने को कहा है, ताकि वहां पर्यटन, सुविधाएं विकसित की जा सकें। इस पहल को सीमांत क्षेत्रों में राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी देखा जा रहा है।
नैसर्गिक सुंदरता से परिपूर्ण उत्तराखंड की वादियां हमेशा से देश विदेश के सैलानियों के आकर्षण का केंद्र रही हैं। हर साल सामान्य परिस्थितियों में राज्य में आने वाले साढ़े तीन करोड़ से अधिक पर्यटकों की संख्या इसकी पुष्टि करती है। बावजूद इसके कई ऐसे स्थल हैं, जो पर्यटकों की नजरों से दूर हैं। इनमें अधिकांश सीमांत क्षेत्रों में हैं। अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे क्षेत्रों में इनर लाइन की बंदिश समेत अन्य कारणों से वहां सीमित दायरे में ही पर्यटन गतिविधियां हो पाती हैं। अब बार्डर टूरिज्म योजना के जरिये ऐसे स्थलों को विकसित करने की तैयारी है।
केंद्र सरकार के इस कदम से उत्तराखंड को दोहरा फायदा होगा। असल में राज्य के गांवों से पलायन एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आया है। पलायन आयोग की रिपोर्ट पर ही नजर डालें तो अभी तक 1702 गांव जनविहीन हो चुके हैं। सीमांत क्षेत्र के गांव भी पलायन की मार से त्रस्त हैं। यहां के निवासी देश की सीमाओं के प्रथम प्रहरी के रूप में अपनी भूमिका निभाते आए हैं। इस परिदृश्य के बीच सीमांत गांवों का खाली होना सुरक्षा की दृष्टि से भी संवेदनशील है। बार्डर टूरिज्म योजना के आकार लेने से राज्य में न केवल सीमांत क्षेत्रों में पलायन को रोकने में सरकार सफल होगी, बल्कि रिवर्स पलायन को भी बढ़ावा मिलेगा।
सीमांत क्षेत्रों में पर्यटन गतिविधियां होंगी, तो इससे स्थानीय निवासियों के लिए गांव में रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे। अभी जिन स्थानों को इस योजना के अंतर्गत लाने पर विचार चल रहा है, उनमें छोटा कैलास, कैलास मानसरोवर मार्ग, टिम्मरसैंण महादेव, गर्तांगली, नेलांग घाटी, जादूंग गांव आदि मुख्य हैं। ये सभी कुछ न कुछ विशेषताएं लिए हुए हैं। विश्व के सबसे दुर्गम मार्गों में शामिल गर्तांगली, तो एक दौर में भारत-तिब्बत के मध्य व्यापार का मुख्य मार्ग हुआ करता था।