भाजपा सरकारों के दौरान उत्तराखंड में संस्कृत भाषा हमेशा ही चर्चाओं में रही है, कभी स्कूलों में संस्कृत पाठ्यक्रम को लेकर तो कभी स्टेशन पर उर्दू भाषा को हटाकर संस्कृत में नाम लिखने को लेकर इस पर विवाद भी रहा है। फिलहाल सरकार राज्य के सभी 13 जिलों में संस्कृत ग्राम स्थापित कर हर जिले में एक संस्कृत विद्यालय खोलने का प्रस्ताव तैयार कर रही है, जाहिर है संस्कृत का नाम आते ही राज्य में फिर एक बार इस पर राजनीति होना तय है।
संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी प्राथमिकताओं को जाहिर करता रहा है, इसी लाइन पर प्रदेश में भाजपा सरकारें भी संस्कृत को लेकर समय-समय पर कुछ खास निर्णय लेती रही है, राज्य में इसको लेकर सबसे पहले और सबसे बड़ा कदम पूर्व की निशंक सरकार की तरफ से लिया गया था, पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने तब संस्कृत को राज्य की दूसरी राज्य भाषा का दर्जा दिया था। इसके बाद समय-समय पर भाजपा की सरकारों में संस्कृत के लिए नित नए आदेश जारी किए गए।
फिलहाल संस्कृत भाषा को लेकर शासन की तरफ से प्रदेश में संस्कृत ग्राम स्थापित कर सभी 13 जिलों में एक एक विद्यालय खोले जाने का प्रस्ताव तैयार किया गया है। हालांकि इसकी रूपरेखा त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के दौरान ही तैयार कर दी गई थी। इस मामले पर सचिव चंद्रेश यादव कहते हैं कि संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए सरकार की तरफ से फैसले को अमलीजामा पहनाने के प्रयास किए जा रहे हैं।